Shant Ras Ki Paribhasha: 15 Udaharan Sahit

भूमिका: क्यों ज़रूरी है शांत रस की समझ?

मानव जीवन लगातार भागदौड़ और इच्छाओं से भरा है। लेकिन जब हम किसी काव्य, श्लोक या प्रसंग में संसार की अस्थिरता और ईश्वर के शाश्वत स्वरूप को समझते हैं, तब मन में एक अनोखी शांति और वैराग्य का भाव जागता है। साहित्य में इसी अनुभूति को शांत रस कहा गया है। काव्यशास्त्र में Shant ras ki paribhasha का बहुत महत्व है। रस वही है जो मन में भावनाओं को जगाता है। जब किसी कविता, कहानी या प्रसंग को पढ़ने-सुनने के बाद मन में वैराग्य, समभाव और शांति की अनुभूति हो—वह शांत रस कहलाता है।

Shant Ras Ki Paribhasha: 15 Udaharan Sahit

कभी-कभी प्रकृति के बीच बैठकर बहती नदी, मंद हवा, और दूर बजते मंदिर के घंटों की ध्वनि हमें आंतरिक शांति देती है। यही अनुभव कवियों ने अपने शब्दों में रस के रूप में पिरोया।

शांत रस की परिभाषा (Shant Ras Ki Paribhasha)

“जब किसी काव्य, घटना या प्रसंग के कारण संसार की नश्वरता और परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान होकर वैराग्य और शांति का भाव उत्पन्न हो, उसे शांत रस कहते हैं।”

अर्थात:

“जब किसी कविता को पढ़कर मन में त्याग, समभाव और प्रभु की शरणागति का भाव आए, तब वह शांत रस है।”

मुख्य स्थायी भाव: वैराग्य (विरक्ति)

शांत रस में पाए जाने वाले भाव (Shant Ras Ke Bhav)

  • विषयों के प्रति अरुचि (लोभ-मोह से मुक्ति)

  • संसार की क्षणभंगुरता का बोध

  • समभाव और आंतरिक संतोष

  • सन्यास या त्याग की भावना

  • प्रभु प्राप्ति की आकांक्षा

शांत रस के भेद (Types of Shant Ras)

  1. वैराग्य भाव: सांसारिक मोह से विमुख होकर प्रभु भक्ति में लीन होना।

  2. दोष-विग्रह: विकारों और पापों का त्याग।

  3. संतोष भाव: जो है उसी में संतुष्ट होना।

  4. तत्त्व-साक्षात्कार: आत्मज्ञान और परम सत्य का अनुभव।

शांत रस के 15 उदाहरण व्याख्या सहित | Shant Ras Ke 15 Udaharan

अब हम 15 बेहतरीन शांत रस के उदाहरण देखेंगे, जिनमें प्रत्येक के साथ छोटी व्याख्या दी जाएगी ताकि पाठक आसानी से समझ सकें:

उदाहरण 1

पंक्ति:
“वन वितन रवि ससि दियो, फल भराव सलिल प्रवाह।
अवनिसेज पंखा पवन, अब न कछु परवाह॥”

व्याख्या: कवि प्रकृति की सुंदरता और प्रभु की रचना का वर्णन करते हुए संसार के प्रति समभाव व्यक्त करता है। यह शांत रस है।

उदाहरण 2

पंक्ति:
“भाग रहा हूं भार देख, तू मेरी और ने हर देख।
क्षणभंगुर भव राम राम॥”

व्याख्या: जीवन की क्षणभंगुरता को पहचान कर प्रभु का स्मरण करना वैराग्य का भाव है, जो शांत रस को दर्शाता है।

उदाहरण 3

पंक्ति:
“सोच रहे थे जीतन सुख है, ना यह विकट पहेली है।
शांति मिलेगी प्रभु शरण में, यही सच्ची सहेली है॥”

व्याख्या: सांसारिक सुख को माया बताना और शांति के लिए प्रभु शरणागति का भाव – शांत रस।

उदाहरण 4

पंक्ति:
“जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहीं।
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्याँ माहीं॥”

व्याख्या: अहंकार का त्याग और प्रभु भक्ति में लीन होना शांत रस का उत्तम उदाहरण है।

उदाहरण 5

पंक्ति:
“मन रे तन कागद का पुतला, लागै बूँद बिनसि जाए।
क्षणभंगुर यह देह है, व्यर्थ अहंकार दिखाए॥”

व्याख्या: शरीर की नश्वरता और अहंकार त्याग की भावना शांत रस का प्रतीक है।

उदाहरण 6

पंक्ति:
“लम्बा मारग दूरि घर, विकट पंथ बहुमार।
कहौ संतो क्युँ पाइए, दुर्लभ हरि दीदार॥”

व्याख्या: प्रभु के दर्शन कठिन हैं, इसके लिए तप और त्याग आवश्यक है – यह वैराग्य भाव शांत रस को दर्शाता है।

उदाहरण 7

पंक्ति:
“कहं लौ कहौ कुचाल कृपानिधि, जानत हों गति मन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पन की॥”

व्याख्या: तुलसीदास प्रभु से दुख हरने की प्रार्थना करते हैं, जिसमें समर्पण और भक्ति भाव है।

उदाहरण 8

पंक्ति:
“मन फूला फूला फिरै, जगत में कैसा नाता रे।
चार बाँस चरगजी मँगाया, चढ़े काठ की घोरी॥”

व्याख्या: मृत्यु की सच्चाई और देह का नश्वर होना शांत रस की ओर संकेत करता है।

उदाहरण 9

पंक्ति:
“बैठे मारुति देखते, राम चरणाबिंद।
युग अस्ति-नास्ति के एक रूप गुण गुण अनिंद्य॥”

व्याख्या: भगवान राम के चरणों का ध्यान करना और अनासक्ति का भाव – शांत रस।

उदाहरण 10

पंक्ति:
“अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम कृपा भव-निसा सिरानी॥”

व्याख्या: राम कृपा से वैराग्य प्राप्त होना शांत रस का अनुभव कराता है।

उदाहरण 11

पंक्ति:
“तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत,
बताओ यह कैसा उद्वेग?”

व्याख्या: यहां त्यागी और सन्यासी जीवन की कठिनाई और वैराग्य का चित्रण शांत रस का भाव है।

उदाहरण 12

पंक्ति:
“चारों कोने आग लगाया, फूँकि दिया जस होरी।
हाड़ जरै जस लाकड़ी, केस जरै जस घास॥”

व्याख्या: मृत्यु के बाद देह का अंत और अहंकार का व्यर्थ होना – शांत रस।

उदाहरण 13

पंक्ति:
“कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ,
जथालाभ संतोष सदा॥”

व्याख्या: संतोष का भाव शांत रस के प्रमुख लक्षणों में से है।

उदाहरण 14

पंक्ति:
“ज्यौं गज काँच बिलोकि सेन, जड़ छांह आपने तन की।”
व्याख्या: जीवन की अस्थिरता और मृत्यु के बोध का शांत रस में चित्रण।

उदाहरण 15

पंक्ति:
“भरा था मन में नव उत्साह, सीख लूँ ललित कला का ज्ञान।
अब समझा, प्रभु भक्ति ही सर्वोत्तम साधन है।”

व्याख्या: सांसारिक इच्छाओं का त्याग और प्रभु में लीन होना – शांत रस।

शांत रस का महत्व (Importance of Shant Ras)

  • मानसिक शांति और आत्मज्ञान प्रदान करता है।

  • अहंकार, लोभ-मोह और क्रोध से मुक्ति देता है।

  • जीवन की वास्तविकता को पहचानने में मदद करता है।

  • धार्मिक और साहित्यिक दोनों दृष्टि से उपयोगी है।

FAQ: शांत रस से जुड़े प्रश्न

शांत रस क्या है?

शांत रस वह भावना है जो हमें भौतिक विकल्पों से परे करके आत्म-समझ और शांति की अनुभूति कराती है।

शांत रस का क्या महत्व है?

शांत रस हमें मानसिक और आत्मिक शांति में मदद करता है और समर्थ संबंधों को बनाए रखने में सहायक होता है।

शांत रस का क्या उदाहरण हैं?

सूर्यास्त का दृश्य और प्रकृति में विचरण करते समय की अनुभूति शांत रस के उदाहरण हैं।

शांत रस कैसे अनुभव किया जा सकता है?

शांत रस को अनुभव करने के लिए हमें भौतिक विकल्पों से परे करने की प्रयास करनी चाहिए और अपने मन को ध्यान में लाना चाहिए।

शांत रस का क्या फायदा है?

शांत रस का अभ्यास करने से हमारे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और हम सामाजिक और आत्मिक स्तर पर संतुलित रहते हैं।

निष्कर्ष: शांत रस का जीवन में महत्व

शांत रस केवल साहित्यिक अवधारणा नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। जब हम अपने मन को ईश्वर की ओर मोड़ते हैं और संसार के लोभ से ऊपर उठते हैं, तभी हम सच्ची शांति का अनुभव करते हैं।

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